दौला काका: भोमट विद्रोह के जनक और स्वतंत्रता सेनानी
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पानरवा के राणा पूंजा सोलंकी जी का विवाह जवास ठिकाने में हुआ था।
इसी जवास से निकला बावलवाड़ा ठिकाना, जहाँ से महापुरुष और महान क्रांतिकारी श्री दौलत सिंह जी खींची बावलवाड़ा (जवास) का उदय हुआ।
भोमट का योगदान
मेवाड़ का भोमट क्षेत्र, जो आदिवासी और राजपूत एकता का प्रतीक रहा है, ने पहले राणा पूंजा जी के नेतृत्व में मुगलों के विरुद्ध और बाद में अंग्रेजों के विरुद्ध भी अविस्मरणीय योगदान दिया।
भील विद्रोह के जनक: दौलत सिंह खींची बावलवाड़ा

“दौला काका” के नाम से विख्यात दौलत सिंह खींची चौहान भोमट क्षेत्र के जवास ठिकाने के बावलवाड़ा गांव के वीर योद्धा और क्रांतिकारी थे।
अंग्रेजों से टक्कर
1818 ई. में मेवाड़ राज्य और अंग्रेजों की संधि के बाद, अंग्रेज सरकार ने भोमट के पहाड़ी और वन क्षेत्र को अपने अधीन करना चाहा।
इस दमनकारी नीति के विरुद्ध दौलत सिंह ने भील समुदाय को संगठित किया और पुलिस थानों को नष्ट कर दिया।
1827 ई. में ईडर से आई अंग्रेजी टुकड़ी का भी पहाड़ी भाग में सफाया कर दिया गया।
अंततः अंग्रेजों को दौलत सिंह जी से संधि करनी पड़ी।
अंग्रेजों और महाराणा की आँख की किरकिरी
भोमट ठिकाना जवास रावत का चाचा और बावलवाड़ा का जागीरदार ठाकुर दौलतसिंह खींची बहुत साहसी, वीर और निर्भीक पुरुष थे।
वे अत्यंत बलशाली और हृष्ट-पुष्ट थे, किसी भी कार्य को असम्भव नहीं मानते थे।
उन्हें पकड़ने के लिए महाराणा और अंग्रेज अफसरों ने बहुत कोशिश की, किंतु वे कभी हाथ नहीं आए।
उनका इतना भय था कि छावनी में सोते सैनिक भी सपने में उन्हें देखकर डरकर जाग उठते और कहते – “दौला काका आया!”
दौलत सिंह अक्सर भेष बदलकर अंग्रेजी छावनी पर छापा मारते।
एक बार वे भील की पोशाक पहनकर लकड़ी बेचने का बहाना बनाकर अंग्रेज अधिकारी के तंबू में पहुँचे।
अधिकारी ने उन्हें भील समझकर पूछा कि दौलत सिंह कैसा है।
तब भील वेशधारी दौलत सिंह ने कहा – “दौलत सिंह अद्भुत पराक्रमी है। उसके पास अनगिनत सैनिक हैं और हर पहाड़ पर उसकी टुकड़ियाँ मौजूद हैं। समय आने पर वह तुम्हारी सारी सेना का नाश कर देगा।”
प्रमाण हेतु उन्होंने कहा कि रात में पहाड़ों की ओर देखना।
रात्रि में अधिकारी ने देखा कि चारों ओर पहाड़ों पर अग्निशिखाएँ जल रही हैं, जिससे उसे दौलत सिंह की शक्ति का आभास हो गया।
लोकगीतों में अमर दौला काका
दौलत सिंह की वीरता और अद्भुत साहस ने उन्हें जन-नायक बना दिया। उनकी प्रशंसा में आज भी लोकगीत गाए जाते हैं, जिनमें अंग्रेजी सत्ता और महाराणा की शक्ति को चुनौती देने वाले उनके पराक्रम का वर्णन है।
एक प्रसिद्ध लोकगीत
गड गड त्रंबक गाज ,
फौजा बीच झंडा फरे :
लड लड दोला लाज ,
भूपां री राखी भली :
गहके गोलाग्री घणां :
नर पण वालो नूर ,
दीसे तुं मरव दोलता ;
काला मगरा केक ,
रूधीरे झाझा रंगीया
अधपत लीया अनेक ,
थने दुनो रंग दोलता ;
थे बांधी हींदबाण ,
गढ़ बरबत हुआ घणा ;
मगरा वाली मान ,
दूनो राख्यो दोलता ;
थड़ लाखा थाड़ा ,
काका सुं लड़ता कही ;
(थारा) दुनियां माही दोलता ;
मेवासी कांकण मथे ;
कर लायो दौलो कहुं :
सोले ने बत्रीस ,
अवर फरंगी उमरा (व)